देश के मुख्य न्यायाधीश वाई डी चंद्रचूड़ ने मध्यस्थता केंद्र का किया उदघाटन
देश के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने आज संगम नगरी प्रयागराज में इलाहाबाद हाईकोर्ट के नए मध्यस्थता केंद्र का उद्घाटन किया। यह मध्यस्थता केंद्र हाईकोर्ट के नजदीक ही स्थापित किया गया है। चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने इस मौके पर जजेज के लिए नई डिजिटल लाइब्रेरी की भी शुरुआत की और साथ ही यूपी की अदालतें नाम की पुस्तक का विमोचन भी किया।इस मौके पर सुप्रीम कोर्ट के साथ ही विभिन्न हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और कई जजेज भी मौजूद थे।
चीफ जस्टिस आफ इंडिया डी वाई चंद्रचूड़ ने इस मौके पर कहा कि देश को बड़ी संख्या में मध्यस्थता केंद्रों की जरूरत है। उन्होंने मध्यस्थता केंद्रों में कम खर्च में मामलों में जल्द से जल्द सुलह समझौता करा कर उन्हें खत्म किए जाने की नसीहत दी। उन्होंने कहा कि ऐसा करके अदालतों से मुकदमों का बोझ घटाया जा सकता है। उनके मुताबिक अगर मध्यस्थता केंद्रों में भी मामलों का निपटारा करने में लंबा समय लगेगा तो लोग सुलह समझौता करने की कोशिशें से बचेंगे।
इससे विवाद भी कायम रहेगा और अदालतों पर मुकदमों का बोझ भी बढ़ता रहेगा। चीफ जस्टिस ने कहा कि खास तौर पर क्रिमिनल केस की संख्या बहुत ज्यादे है ,छोटे मामलों में भी दो दो साल से ज्यादे समय जेल में बंद रहते है ,जबकि एसे लोगों को कोर्ट से बेल मिल जानी चाहिए लेकिन व्यवहार में ऐसा होता।नहीं है जो चिंता का विषय है ।
चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने इस मौके पर चिंता जताते हुए कहा कि आज भी हम 1860 की उस आईपीसी का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिसे अंग्रेजों ने स्वतंत्रता आंदोलन को कुचलने, सेनानियों को जेल में डालने, विरोधियों को प्रताड़ित करने और उनका उत्पीड़न करने के लिए तैयार किया गया था।
हालांकि अब इनका उपयोग नागरिकों के हितों की रक्षा के लिए किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि आज जरूरत इस बात की है कि अतीत में जो कुछ भी हुआ है, चाहे वह भारत की आजादी से पहले की घटनाएं हो या फिर आजाद भारत में इमरजेंसी की घटना, उन्हें अब कतई न दोहराया जाए। उन्होंने जिला अदालतों के विचाराधीन कैदियों को आसानी से जमानत देने में हिचकने पर भी सवाल उठाए और कहा कि पता नहीं जिला अदालतें जमानत देने से क्यों डरती हैं।
चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने इस मौके पर कहा कि कानून के क्षेत्र में महिलाओं की संख्या तेजी से बढ़ रही है। महिलाएं न्यायपालिका के क्षेत्र में अपनी जगह बना रही हैं। यह बेहद सकारात्मक और अच्छा कदम है।
हालांकि उन्होंने अदालत परिसरों में महिलाओं के लिए पर्याप्त संख्या में शौचालयों के नहीं होने पर चिंता जताई। उनके मुताबिक अदालत में महिलाओं के लिए पर्याप्त संख्या में शौचालय होने चाहिए और इन अलग शौचालयों में सेनेटरी नैपकिन डिस्पेंसर भी होने चाहिए।