बांके बिहारी लाल के प्राकट्योत्सव पर कान्हा की नगरी में वृन्दावन में उल्लास एवं उमंग का वातावरण
वृन्दावन। रसिकोपासक संगीत शिरोमणि स्वामी हरिदास के परमाराध्य बांके बिहारी लाल के प्राकट्योत्सव पर कान्हा की नगरी में उल्लास उमंग का अमृतमयी वर्षण हो रहा है। नगर का कण कण बांके बिहारी लाल के जयकारे से अनुगुंजित हो उठा है।साँवरे की प्राक्टयस्थली पर धार्मिक अनुष्ठानों की धूम मची हुई है। जन जन के आराध्य ठाकुर बाँके बिहारी जी के प्राक्टय दिवस मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष की पंचमी पर श्री निधिवनराज में ब्रह्ममुहूर्त से ही उत्सव का माहौल है। स्वामी हरिदास जी की वंशपरम्परा से निकले ठाकुर जी के सेवानुरागी गोस्वामीजन पीत वस्त्र पहनकर प्राक्टयस्थली पर एकत्रित हुए।जहां वैदिक ऋचाओ की ध्वनि के साथ दुग्ध,दही,मधु,शर्करा, घृत इत्यादि से महाभिषेक कर सुगन्धित इत्र द्रव्यों से मालिश की गई।
सैकड़ो भक्त इस महाभिषेक का पंचामृत व अपने आराध्य के प्राक्टयस्थली की झलक पाने के लिये लालायित दिखाई दे रहे थे। महाभिषेक के उपरांत सेवायत भीकचन्द्र गोस्वामी, बच्चू गोस्वामी, रोहित गोस्वामी ने महाआरती उतारी। सेवायत गोस्वामी समाज ने भक्तो को लाड़ले के जन्मोत्सव की बधाई दी। सम्पूर्ण श्री निधिवनराज को देशी विदेशी पुष्पो के अलावा रंगबिरंगे गुब्बारो से सजाया गया था।
रसिक अनन्य नृपति स्वामी हरिदास अपने लाड़ले ठाकुर बांके बिहारी लाल को चांदी के रथ में विराजमान होकर बधाई देने पँहुँचे। श्रीनिधिवनराज से प्रारंभ हुई शोभायात्रा नगर के प्रमुख मार्गों से होती हुई बाँके बिहारी मंदिर पहुंची। संगीत शिरोमणि स्वामी हरिदास स्वयं परम्परानुसार अपनी साधनास्थली निधिवनराज से ठाकुर जी को बधाई देने के लिये जैसे ही
चांदी के रथ में विराजमान हुए कुंजबिहारी श्री हरिदास के उदघोष से सम्पूर्ण परिसर गुंजायमान हो उठा है। देश के विविध प्रांतों से आये बैंड बाजों व ढोल नगाड़ो की धुन पर श्रद्धालुओं की टोलियां मदमस्त होकर थिरकने लगी।
ठाकुर जी को बधाई देने मन्दिर पहुँचे स्वामी हरिदास को आज ठाकुर जी के साथ अनेको व्यंजन निवेदित किये गये। मध्यान्ह स्वामी जी की बधाई यात्रा जैसे मन्दिर के मुख्यद्वार पर पहुंची।
सेवायत गोस्वामी समाज ने बधाई पद गायन करते हुए स्वामी जी के चित्रपट को हाथों में झुलाते हुए मन्दिर के गर्भगृह में ठाकुर जी की प्रतिमा के समक्ष विराजित किया।
ठाकुर जी व स्वामी जी के सन्मुख केशर भात,दुधभात, चन्द्रकला, केशर हलुआ आदि विविध व्यंजन निवेदित किये गए। मन्दिर परिसर को पीले रंग के गुब्बारों,व परदों से सजाया गया था।