जानिए कहां और कैसे होती है पांडवों की शराद कर्म
उत्तरकाशी जिले के यमुना घाटी क्षेत्र को पांडवों की धरती कहा जाता है और इसी पांडव की धरती में हर एक गांव में आम लोगों पर पांडव भी अवतरित होते हैं।
अलग-अलग रूपों में यह सब देखने में मिलता है खासकर गांव में सामूहिक शराद हो या किसी एक परिवार द्वारा दी जाने वाली शराद हो इसमें गांव के कुछ लोगो पर पांडव अवतरित होते हैं जिन्हें देवता का पशुवा भी कहा जाता है, तो आज बताते हैं कि यमुना घाटी के नगानगांव में दी गई सामूहिक शराद किस तरीके से इसमें महाभारत के अंश भी दिखते हैं।
दरअसल शराद को अपने पूर्वजों को याद करने और उन्हें खुश रखने के लिए दिए जाने की परंपरा होती है और पांडवों की शराद द्वापर युग से चली आ रही प्रथा है जिसमें घाटी के हर गांव में लोग इसको निभाते भी हैं।
शराद की इस परंपरा में हाथी स्वांग यानी हाथी नृत्य और गैंडी वध का दृश्य भी देखने को मिलता है यानी कि महाभारत का यह वह अंश है जिसमें गांव के कुछ पशुवा जिनमे देवता भी अवतरित होते हैं जो पांडव के रूप में होते हैं।
इसके अलावा मनोरंजन के तौर पर ग्रामीण पांडव नृत्य में हिस्सा लेते हैं जिसकी यह अदभुत झलकियां भी दिखती है मान्यता है कि पांडवों में अर्जुन की सवारी हाथी हुआ करती है और एक इशारा करने पर हाथी उसी दिशा पर मुड़ जाता था जबकि गैंडी वध में पांडवो पर कुछ दोष हो गए है और उससे मुक्त होने के लिए गैंडा नाम के जानवर के सींगो की जरूरत थी जिसकी खोज में अर्जुन जंगल से गैंडा वध करते है उसकी सिंग को हासिल कर अपने पूर्वजों को समर्पित करते हुए दोष मुक्त हो जाते है जिसकी झलकिया आज भी देखने को मिलती है।
यह परंपरा आज के युवा भी बेहद बारीकी से सीख कर निभा रहे है साथ ही युवा पीढ़ी को अपनी पारंपरिक धरोहर को पहुंचाने की अपील भी कर रहे है।