इलाहाबादी सुर्ख लाल इलाहाबादी सेबिया अमरूद ने बाजार में दी दस्तक, शौकीनों की बल्ले बल्ले
संगम नगरी प्रयागराज की पहचान जहां एक तरफ विश्व प्रसिद्ध संगम से होती है। वहीं इस शहर की दूसरी पहचान इलाहाबादी लाल सुर्ख सेबीया अमरूदों से भी है। यहां पैदा होने वाला अमरूद बाहर से सेब की तरह सुर्ख लाल दिखता है तो वहीं सफेद प्रजाति का सफेदा अमरूद जो अपने खास मुलायम और मिठास के लिए के जाना जाता है।
अपने खास लाल रंग और मिठास की वजह गंगा और यमुना का दोआबे क्षेत्र की मिट्टी बतायी जाती है। जिले के मुख्य उद्यान अधीक्षक कृष्ण मोहन चौधरी के मुताबिक इलाहाबादी अमरूद की विशेषता गंगा यमुना नदी के बीच के दोआबा क्षेत्र के खास मानक वाले मिट्टी की वजह से यहां का अमरूद सेब की तरह लाल होने के साथ खूब मीठा भी होता है। इस बार भी ठंड बढ़ने के साथ ही बाजार में इलाहाबादी अमरूद ने दस्तक दे दी है।
बाजार में इलाहाबादी अमरूद के आने से अमरूद प्रेमियों से दुकानें गुलजार होने लगी है तो वहीं इस अमरूद के कद्रदानों का कहना है कि उन्हें हर वर्ष इंतजार रहता अपने इलाहाबादी अमरूद का । वहीं इस वर्ष काम और देर से हुई बरसात की वजह से अमरूद की फसल की पैदावार थोड़ा कम है और देर से बाजार में आई है , पेश है खास रिपोर्ट
संगम नगरी प्रयागराज में पैदा होने वाला इलाहाबादी अमरूद की देश और दुनिया में अपने लाल रंग और मिठास की वजह से अलग पहचान रखता है। गंगा यमुना के बीच दोआबे की धरती पर पैदा होने वाला इलाहाबादी अमरूद इस मिट्टी में पैदा होने की वजह से सेब की तरह सुर्ख लाल दिखता है जो प्रयागराज के अलावा बाहर कहीं नहीं पैदा होता है।
लाल रंग का दिखने और स्वाद में मीठा होने की वजह से इस अमरूद की डिमांड देश भर ही नहीं बल्कि दुनिया भर में है। प्रयागराज में बिकने वाले इस अमरूद को लोग खरीदकर दूसरे प्रदेशों में रहने वाले लोगों को भी भेजते हैं। यही नहीं बहुत से लोग इस अमरूद को उपहार के रूप में भी ले जाकर देते हैं।
बाजार में इन सामान्य इलाहाबादी अमरूद की कीमत 40 रुपये प्रति किलो से लेकर सुर्खा और सफेदा अमरूद 140 रुपये किलो तक बिक रहा है। इलाहाबादी अमरूद प्रेमियों का कहना है कि ठंड के इस मौसम में अगर अमरूद खाने को ना मिले तो खाना हजम नहीं होता है ,इंतजार रहता है कश्मीरी सेब की तरह लाल सेबियां अमरूद का ।
वहीं प्रयागराज के अमरूद की प्रजातियों के बारे में मुख्य उद्यान विशेषज्ञ कृष्ण मोहन चौधरी का कहना है कि प्रयागराज में गंगा यमुना के बीच का जो दोआबा का इलाका है जहां के तकरीबर चालीस येसे गांव है जहां के इलाके में पैदा होने वाले अमरूद सुर्ख लाल प्रजाति का सेबीय और सफेद रंग का सफेदा अमरूद काफी मीठा होता है। उनके मुताबिक गंगा यमुना के दोआबे इलाके के बीच की धरती में पानी का स्तर नीचे है और बरसात बहुत ज्यादा न होने की वजह से अमरूद की विशेष प्रजाति पैदा होती है।
संगम नगरी में पैदा होने वाले इस अमरूद की विशेषता है कि अमरूद की एक प्रजाति जो बाहर से देखने में लाल होता है जिसको सुर्खा या सेबिया अमरूद कहा जाता है। सेब के जैसा बाहर से लाल दिखने की वजह से ही इसको सेबिया अमरुद भी कहते हैं।इसी तरह से अमरूद की दूसरी प्रजाति ऐसी होती है जो अमरूद बाहर से देखने में सफेद होता है जबकि उसको जब काटा जाता है तो वो अमरूद अंदर से लाल रंग का दिखता है।
जबकि अन्य हिस्सों में पैदा होने वाला अमरूद बाहर से देखने में हरा होता है जबकि काटने पर वो अंदर से सफेद रंग का ही दिखता है। मुख्य उद्यान अधिकारी कृष्ण मोहन चौधरी के मुताबिक प्रयागराज के साथ ही कौशाम्बी जिले के नजदीक तक के इलाके तक में अमरूद की पैदावार होती है।
उनके मुताबिक 5 हजार हेक्टेयर से अधिक के क्षेत्र में अमरूद की खेती होती है। जिसमें से चार हजार हेक्टेयर जमीन कौशांबी में है। जबकि एक हजार से अधिक का क्षेत्र प्रयागराज में पड़ता है। करीब 20 साल पहले तक कौशांबी और प्रयागराज जिला एक ही था। जिस वजह से इस अमरूद को इलाहाबादी अमरूद के नाम से जाना जाता है।
हालांकि इस साल प्रयागराज कौशांबी में देर से बरसात होने की वजह से पैदावार कुछ कम होने का अनुमान है। प्रयाग राज का यह इलाहाबादी अमरूद जैसे जैसे ठंड बढ़ती है वैसे वैसे इसकी रंगत औऱ मिठास बढ़ती है। हालांकि पाला पड़ने का अमरूद की पैदावार पर बुरा असर भी होता है।
बहरहाल, प्रयागराज के सेबिया और अन्य प्रजाति के अमरूदों को एक्सपोर्ट क्वालिटी का बनाने के लिए भी सरकार के स्तर पर प्रयास किए जा रहे है। इसके साथ ही अमरूद को बेहतर क्वालिटी तैयार करने के लिए बाग में लगे अमरूदों के को फ्रूट बैगिंग के जरिये पैक किया जा रहा है।
फ्रूट बैगिंग के जरिये अमरूद का रंग ज्यादा सफेद और ज्यादा चमक दार होगा। इसी के साथ अमरूद की फसल को बीमारियों से बचाने के लिए किसानों को जागरूक भी किया जा रहा है।
साथ ही किसानों को अमरूद की ज्यादा पैदावार के लिए अल्ट्रा डेंसिटी फार्मिंग की ट्रेनिंग भी दी जाएगी। जिससे कि किसान कम जगह में ज्यादा अमरूद की पैदावार कर सकेंगे और उनकी आमदनी भी बढ़ेगी।
हालांकि इलाहाबादी अमरूद के बगानों में ऊटखा रोग के चलते किसान परेशान है क्योंकि इससे बगान के बगान नष्ट हो रहें है जिसे बचाने की कवायत चल भी रही है ।बहराल बाजार में इलाहाबादी अमरूद के दस्तक से इसके कद्रदान खूब खरीद रहे है