नीतीश ने मिलाया बीजेपी से हाथ !
◆ शक्ति प्रकाश श्रीवास्तव
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सेक्स ज्ञान संबंधी बयान के बाद से देश की सियासत में भूचाल सा आ गया है। हर दल का नेता इन दिनों या तो इस पर टिप्पणी कर रहा है या इस पर सफाई दे रहा है।
सियासी जानकारों का यह भी मानना है कि विपक्षी गठबंधन आईएनडीआईए को एकजुट करने वाले नीतीश कुमार के विवादित बयानों ने बैठे-बिठाये सत्तारूढ़ गठबंधन को मजबूत कर दिया है। इसको लेकर कांग्रेस सहित कई दलों के नेताओं ने चिंता भी जताई है। लेकिन संभव है कि उनकी यह चिंता बेमानी साबित हो जाये।
क्योंकि यह भी संभव हो सकता है कि सियासत में पल्टूराम के नाम से मशहूर नीतीश कुमार का यह विवादित बयान उनके पलटूबाजी सियासत की कोई चाल हो। बिहार की सियासत में डेढ़ दशक तक मुखिया बने रहने के अनुभव के बाद प्रधानमंत्री बनने का मोह किसी को भी हो सकता है। नीतीश को भी लगा होगा।
बाद में उन्होने विपक्षी गठबंधन के लिए प्रयास किया और गठबंधन मूर्त रूप ले भी लिया। नीतीश को पूरी उम्मीद थी कि विपक्षी एकता के लिए मेरे द्वारा किए गए प्रयास को देखते हुए कांग्रेस आदि पार्टियां आगे बढ़कर मुझे गठबंधन का संयोजक बना देंगी। लेकिन गठबंधन की तीन-तीन बैठकों के बाद भी ऐसा कुछ नहीं हो सका। इस बीच पाँच राज्यों में विधानसभा चुनावों की घोषणा हो गई।
इसमें ही विपक्षी गठबंधन बनाने का तिनका-तिनका प्रयास तिनके की तरह ही एक-एक कर उधड़ने लगा। पहले सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव की पार्टी सपा और अन्य दलों के साथ कांग्रेस द्वारा जो बर्ताव मध्य प्रदेश में किया गया। वो गठबंधन धर्म के लिए तो ठीक नही ही था विपक्षी गठबंधन के भविष्य के लिए भी ठीक नहीं कहा जा सकता है।
ऐसे में सियासी धुरंधर नीतीश कुमार को सिर मुड़ाते ओले पड़ने जैसी स्थिति बनते दिखने लगी। इसलिए संभव है की नीतीश ने ही बीजेपी के साथ मिलकर ऐसी चाल चलने की योजना बनाई जिससे एक झटके में विपक्षी गठबंधन की कमर सरक जाये और दिन प्रतिदिन दंभ पालने वाली कांग्रेस को भी दिन में तारे नजर आने लगे।
जिस तरह से मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, मिजोरम और तेलंगाना में विधानसभा चुनाव के ऐन मौके पर नीतीश ने जो बात कही उसके परिणाम के बारे में यह संभव ही नहीं है कि नीतीश जैसे नेता को मालूम न हो। इतना जानने के बाद भी अगर उन्होने सेक्स संबंधी बात और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को बुरा-भला कहा तो ऐसा माना जा सकता है कि ये उनकी सोची समझी रणनीति का हिस्सा है।
विधानसभा चुनाव प्रचार में जिस तरह से नीतीश के बयान पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरीखे नेता ऐसी-तैसी कर रहे हैं उस पर गठबंधन के इक्का-दुक्का छूटभैये नेताओं को छोड़ किसी बड़े नेता ने अभी तक कुछ भी बचाव में नहीं कहा है। कांग्रेसी नेताओं ने चुप्पी ही नही तोड़ी। क्योंकि नीतीश के बयान से चुनावी राज्यों में नीतीश का कोई नुकसान नहीं होने वाला क्योंकि वहाँ उनके खोने के लिए कुछ नहीं है अलबत्ता कांग्रेस को महिला और दलित वोटरों की नाराजगी का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
ऐसे में इन सियासी समीकरणों की चुगली की मुताबिक संभव है कि नीतीश एक बार फिर बीजेपी के साथ गलबाँहिया कर लें। क्योंकि राजनीति में सब जायज है और बिहार का सियासती इतिहास इस बात का गवाह है कि नीतीश इसके बेहतर खिलाड़ी रहे है।
अगर नीतीश ने वाकई ऐसा किया तो कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल और नवगठित गठबंधन की ऐसी-तैसी हो जाएगी।